संत निरंकारी सत्संग में सतगुरु माता सविंदर हरदेव के प्रवचन
*सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी महाराज के प्रवचन (05-फरवरी-18, भोपाल)*
*प्रचार यात्रा*
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी
1) साध संगत जी, बाबाजी ने एक बार अपने विचारों में फरमाया,
कि _even a clock that stops is correct 2 times a day_,
कि घड़ी , रुकी होती है वो भी दिन में दो बार सही समय जरूर दिखती ,
2) हमारे दिल मे किसी के प्रति गलत भाव आ जाता है या हम कह देते है ,
वो इंसान अच्छा नही है ,
तो हमारे दिल मे उसके अगर अंदर कोई अच्छाई भी है वो भी नज़र नही आती,
उसकी हर अच्छाई को हम ignore कर देते है नज़रअंदाज़ करते है,
3) साध संगत जी ,
_There is something best in the worst of us, there is something evil in the best of us_
हर इंसान में अच्छाई या बुराई जरूर होती है , अभी हमारे पे depend करता है कि उसकी अच्छाईयों कि तरफ हम ध्यान दे या बुराइयों की तरफ ,
अगर हम उसकी अच्छाईयों की तरफ ध्यान दे, तो जो उसके अंदर जो गुण है वे हम अपने अंदर भी ग्रहण करेंगे हम positive होंगे ,
पर अगर हम बुराइयों की तरफ ध्यान देंगे उसके अंदर तो है ही,
उसके बारे में बुरा बोलके वही negativity हम अपने अंदर भी ले आएंगें ,
और अक्सर हम कहते है वह इंसान तो बहुत बुरा है
वो हमेशा लड़ाई-झगड़ा करता है, सबकी निंदा करता है, सबके बारे में गलत बोलता है, सबसे नफरत करता है और सारा समय अपना वो निंदा-नफरत में ही व्यतीत करता है ,
4) चलो मान लिया वो काफी समय अपना निंदा में व्यतीत करता है ,
पर हमें तो बाबा जी ने ब्रह्मज्ञान दे के ,
सेवा,सिमरन,सत्संग के साथ जोड़ा है ,
और हम कह रहे है कि वो सारा समय निंदा में व्यतीत करता है,
तो क्या हम सारा समय उसी लगन, उसी शिद्द्त के साथ सेवा,सत्संग,सिमरन करते है,
हमारे लिये सेवा,सिमरन, सत्संग के लिये क्या वही लगन है ,
5) साध संगत जी , अक्सर फिर हम यही भी कह देते है कि हम दोनों time सत्संग करते है ,
सेवा भी करते है ,
चलो मन लिया सेवा सिमरन सत्संग भी कर रहे है,पर
कही हमारा ये हाल तो नही कि हम संगत में बैठ के प्रीत, प्यार , नम्रता मिलजुल के रहने वाली बातें कर रहे है
पर जो ही संगत समाप्त होती है, बाहर निकलते ही हम भी वही लड़ाई-झगड़ा,निंदा- नफरत खुद ही तो नही शुरू हो जाते ,
6) ये तो वही बात हो गयी
_We cannot pray in love and live in hate , still say we are worshipping god,_
अगर हमारे words positive है ,
The positive words have to be rooted in positive deeds and positive feelings , हम खुद positive रहेंगे तो दुसरो को भी positive रहने की शिक्षा दे पायंगे ,
और जो भक्ति होती है असली मायने में भक्ति होती है वो तो हमारे को इतना विशाल कर देती है ,
कि हमारे अंदर किसी के प्रति कोई negativity रहती ही नही, क्योंकि हमें हर एक इंसान में इस निरंकार-प्रभु-परमात्मा का रूप नज़र आना शुरू हो जाता है ,
सब अपने लगने शुरू हो जाते है,
7) निरंकार कृपा करें इसी प्रकार से सभी का positive भक्ति वाला जीवन सभको दे ।
प्यारी साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी।