डाकपत्थर बैराज का मामला एक बार फिर सुखिर्यों मे है। इस बार ये मामला यूजेवीएनएल के कुछ अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज होने को लेकर सुर्खियों मे है। ये पूरा मामला है क्या इसे समझने के लिए आपको थोडा पिछे ले चलते है। दरअसल 2019 मे डाकपत्थर बैराज की( downstream) डाऊन स्टीम और गेट कार्य के लिए टेंडर स्वीकृत हुए थे। टेंडर प्रकाशित होने के बाद जो लोग टेंडर प्रक्रिया पूरी कर सकते थे सभी लोगों ने इसमें भाग लिया। मगर टेंडर कार्य पराग जैन नामक ठेकेदार के नाम हो गया।
कहानी शुरू होती है यहीं से, जाहिर सी बात है कि विभाग उसी फर्म या ठेकेदार को अपना काम देगा जो उसकी अनुबंध की शर्ते पूरी करता हो। मगर कंस्ट्रक्शन गैलरी के सविंद्र कुमार आनंद किसी भी हालत मे इस काम को पाना चाहते थे।
हमारे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जब सविंद्र कुमार आनंद इस टेंडर की शर्ते पूरी नहीं कर पाए तो इस काम को पाने के लिए विभाग के अधिकारियों को हर संभव लालच देने की कोशिश की मगर अपनी कोशिश में नाकाम रहे। इसके बाद समाचार पत्रों के माध्यम से यूजेवीएनएल और निर्माण कार्य को लेकर कहीं सवाल उठाए गये मगर सभी शिकायत गलत साबित हुई ।
अन्त मे थकहार कर हाईकोर्ट की शरण मे चले गये। हाईकोर्ट मे अपनी पीटिशन दायर करने के बाद जब विभाग के अधिकारियों से जबाब तलब किये गये तो हाई कोर्ट मे भी कुछ साबित नहीं कर पाये | जब केस डबल बेंच मे गया तो विभाग ने इनके फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र सामने रख दिये। जैसे ही इन महाशय को लगा कि अब कोर्ट मे बाजी उल्टी पड़ गई तो चुपचाप अपना केस वापस ले लिया जिसका प्रमाणपत्र साथ संलग्न है। इतने से भी जब ठेकेदार का मन नहीं भरा तो इन्होंने एक शिकायत जिला कोर्ट मे डाल दी, जिसकी जानकारी यूजेवीएनएल के अधिकारियो को नहीं थी | जहां से जिला कोर्ट ने एक पक्ष (ठेकेदार)को सुनकर यूजेवीएनएल के कुछ अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए | अब सवाल ये उठता है कि जब ठेकेदार सविंद्र कुमार आनंद अपनी बात को लेकर इतना सही है तो फिर हाईकोर्ट मे मुकदमा दर्ज करके उसे वापस क्यों लिया गया। दूसरा जिस जिला कोर्ट मे इन्होंने अपनी शिकायत दर्ज कराई क्या वहां इन्होंने हाईकोर्ट मे मुकदमा वापस लेने के तथ्यों को छुपा दिया। अब तथ्यों को जिला कोर्ट से छुपाया है तो ये कोर्ट को गुमराह करने वाली बात है और कोर्ट से जानबूझकर तथ्य छुपाने की साजिश भी है। इस पूरे मामले को यदि गौर से देखा जाए तो ये ठेकेदारों का आपसी रंजिश का मामला लगता है और विभाग मे मनमुताबिक काम न मिलने के वजह से अधिकारियों के बेवजह परेशान करने का मामला लगता है जो की बहुत ही खतरनाक परंपरा है और अगर इसे न रोका गया तो कल कोई भी आदमी किसी भी अधिकारी को कोर्ट की धमकी देकर उसे परेशान कर सकता है।